तीन बहुएँ, भाग 1
रत्नेश जी पी डब्लू डी मे अच्छे पद पर जॉब कर रहे थे मुश्किल से अब 6 8 महीने की नौकरी बची थी...। अच्छी सैलरी के साथ पर्याप्त ऊपरी इनकम भी थी जिस से उनके 3 बेटे उनकी पत्नियां और उन सब के बच्चे सभी शहर मे रहकर अच्छी खासी खुशहाल जिंदगी जी रहे थे।
रत्नेश जी की पत्नी की अचानक बिगड़ी तबियत से परेशानी सबको हुई... पर शहर मे होने के कारण अच्छे अस्पताल मे इलाज कराया गया... वक़्त की ऐसी मार थी रत्नेश जी के जीवन मे की जब घर पर रहकर पत्नी संग पोते पोतियों की खुशियां देखते तब उनकी पत्नी ब्लड कैंसर से पीड़ित हो गई...
रत्नेश जी काफ़ी खर्च किये... पर डॉक्टर का जबाब महज दो महीने का वक़्त है कहकर हाथ खड़े कर लिये...
अब जो भी थी सो ऊपर वाले के भरोसे थी....
रत्नेश जी अपने कार्यकाल के बाकि बचे हुए ड्यूटी को किसी तरह पूरा कर रहे थे.... क्योंकि अब उनको ड्यूटी के साथ साथ अपनी पत्नी के साथ वक़्त भी बिताना होता था...
तीन बेटे तीन बहु पोते पोतियाँ कोई भी दो पल साथ बैठकर बात ना करें.....
समय गुजरता गया..... रत्नेश जी की पत्नी बिभा को अब अहसास हो चला था की उनके पास अब जीवन के कुछ दिन ही शेष है,,,. और अपने तीनो बहु की बेरुखी अपने प्रति समझ रही थी....
रत्नेश जी ही दफ्तर से घर आते तो अपनी पत्नी बिभा का देखभाल करते.....।
ये बात बिभा बिस्तर पर पड़े पड़े भी सोचती रहती... आखिर उसके जाने के बाद उसके पति का क्या होगा।
आज तो वो बीमार है तो पति साथ दे रहे है, पर कल को तो उसके पति रत्नेश जी अकेले होंगे.... वक़्त का कौन जनता है...
एक दिन बिभा ने अपने पति रत्नेश जी से कुछ मांग की... पहले तो रत्नेश जी को पत्नी बिभा की मांग थोड़ी अटपटी लगी.. लेकिन मरने वाले की आखिरी इच्छा पूरा करने मे क्या हर्ज है... सो वैसा ही उन्होंने कर दीया...
एक दिन रत्नेश जी होने दफ्तर मे थे तभी बिभा अपनी तीनो बहुओं और बेटों को बुला कर वो शपथ पत्र बारी बारी से पढ़वाई....
सभी लोग वो शपथ पत्र पढ़कर दंग रह गए....
जो लोग 20 हजार और 25 हजार के लिये 12 12 घंटे काम करते है फिर भी घर की बच्चों की जरूरते पूरी नहीं कर पाते है उनके ही घर मे माँ बाप के पास इतने खजाने पड़े हुए हैँ।
बिभा देवी आखिर मे वो शपथ पत्र बेटे के हाथ से लेकर फाड़ दी.... और लड़खड़ती आवाज मे बोली की अगर तुमलोग को ये खजाना चाहिए तो अपने बाबू जी का ख्याल रखना नहीं तो वो भी शपथ पत्र बनबा चुके हैँ, और वो होनी सारी पूंजी करीब करीब किसी अनाथालय मे दे देंगे....
तीनो बेटे और बहु एक दूसरे को अचंभुत हुए नज़रो से देख रहे थे....
तीनो बेटे आपस मे बाते कर रहे थे... की घर मे इतना खाजाना होने के बाबजूद हम सब प्राइवेट कंपनी मे मजदूरों की तरह खटते है, फिर भी बच्चे बीबी की डिमांड पूरी नहीं कर पाते हैँ....
सुबह से शाम हो गई तीनो बेटे अपने अपने कमरे मे बीबी के साथ इस बात पर चर्चा कर रहे थे की जब माँ के पास इतबे पैसे है तो बाबूजी के पास तो दुगने पैसे होंगे...।
शाम होते होते रत्नेश जी घर आये... और घर आते ही हर दिन की तरह दफ्तर से घर आकर सीधे अपनी पत्नी बिभा के कमरे मे जाते वहा उनकी साफ सफाई दवाई सब करते...
पर आज बिभा जी अपनी जिंदगी के पिंजड़े से उड़ चुकी थी,,,
रत्नेश जी जोर जोर से चिल्लाये घर मे शोर होने के कारण सभी बिभा जी के कमरे के तरफ दौरे आये.....
कमरे मे बिभा की मृत शरीर और पास बैठ बेसुध रत्नेश जी को देखकर सभी समझ गए की बात क्या है....
कुछ ही देर मे आस पास के लोग इकठा हो गए....
जितने लोग उतनी बाते होने लगी...
तीनो बहुएँ भी होनी अपनी बात रखने लगी... तबियत ज्यादा ख़राब होने के कारण आज तो तीनो भाई कम पर भी नहीं गए.....
पर समय के साथ रत्नेश जी होनी पत्नी बिभा जी का श्राद्ध कर्म पुरे अच्छे से किये.... उनके कर्म क्रिया मे खर्च हुए पैसे भी उनके बेटे बहु के आँखों मे खटकने लगी...
तीनो बेटे और मिलजार ये फैसला किये की वो खजाना चाहिए तो हम तीनो को मिलकर रहना होगा और बाबू जी की सेवा मे कोई कमी नहीं रहे जब जिसको हो सके सेवा देखभाल करें.. नहीं तो सारी संपत्ति किसी अनाथालय मे दे देंगे.....
इस बात पर सभी राजी भी हो गए...
रत्नेश जी होनी बची हुई 4 महीने की ड्यूटी करने लगे, पहले घर आने की जल्दी होती थी पर अब तो बीबी भी नहीं रही सो वो ज्यादा वक़्त होने दोस्तों संग बाहर ही गुजरते....
पर घर आने जे बाद उनके खातिरदारी मे भी कोई कमी नहीं रह जाती...
उनके साफ सफाई कपडे खाने पिने से लेकर उनके खाली वक़्त मे बेटे बहु के साथ बात करना उन्हें भी अच्छा लगने लगा था...
बहुत जल्द ही वो अपनी पत्नी की कमी को भूलते जा रहे थे,,,
3 महीने किस तरह गुजर गए रत्नेश जी को पता ही नहीं चला.... और अब तो घर मे भी तीनो बहु सेवा करने खाना खिलाने या फिर उनके साथ बैठकर बच्चों संग सुख दुख की बाते करने से पूछे नहीं हटते... सब कुछ अच्छा चल रहा था..
अब रत्नेश जी अपने दफ्तर मे काम कम करते और अपने रिटायरमेंट के सारे पेपर तैयार करने मे ज्यादा वक़्त देते...
ऐसे ही एक दिन आलमारी कद ऊपर से फ़ाइल का बंडल निकालने के क्रम मे उनके आँखों मे कुछ चला गया...
वो दर्द से बिलबिलाये... और अपने पोते पोतियों को आवाज दिए..
उनकी आवाज रसोई मे कम कर रही छोटी बहु के कानो मे गई तो वो दौरी दौरी आई....
बहु देखो जरा आँखों मे कुछ चला गया....
उनकी छोटी बहु अपने ससुर की आँखों से कचरा निकालने लगी...
वो जल्दी मे अपनी सारी के पल्लू के कोने से आँखों से कचरा निकालने लगी.....
ऐसा कीजिये आप बैठ जाइये मे धीरे धीरे करती हूं नहीं तो आंख मे चुभ जाएगी....
अगले ही पल रत्नेश जी की बीच (मँझली) बाली बहु होने ससुर के कमरे मे जाने ही वाली थी की उसे कमरे के अंदर से चूडियो की खनक सुनाई दी, जिसे सुनकर वो ठुमक सी गई और परदे के पीछे से झाँकने लगी....
अंदर वो अपने ससुर को तो नहीं देख पर रही थी पर अपनी देबरानी को झुक कर कुछ हरकत करते देखि... हाँ वो आँखों से कचरा ही निकाल रही थी पर उनके मँझली बहु को कुछ और ही लगा.... वो दबे पाव वापस पास के बाथरूम मे चली गई और वहा से दोनों की बाते सुनने लगी....
कुछ देर मे छोटी बहु कमरे से निकलकर रसोई मे चली गई...
और पीछे पीछे रत्नेश जी भी कमरे से निकले...
अरे बहु तुम जरा ये रख लो... वो अपने पॉकेट से करीब 5हजार रूपये निकालते हुए दिए.... उनकी छोटी बहु वो पैसे अपने पास रखते हुए हाँ मे जबाब दी...
अब केसा महसूस कर रहे है.... बहुत हल्का तुम नहीं होती अभी तो कितना परेशान होता,,,,
बाथरूम के थोड़े खुले दरवाजे की ओट से मँझली बहु सब देख सुन रही थी..
वो देखि कुछ सुनी कुछ और समझ गई बहुत कुछ....
वो मन ही मन इस बात को पचा नहीं पर रही थी...
आज इतने पैसे छोटी बहु को दिए है क्या पता कल को और भी दे....
उसमे क्या है जो मुझमे नहीं.. ऐसी क्या कमी है मुझमे आखिर,
पुरे दिन मँझली बहु के मन मे ये ख्याल आती रही... आख़िरकार वो भी फैसला कर ली की वो भी इसी रास्ते पर चलेगी लेकिन किसी को बताये बिना.
एक दिन दो दिन गुजर गए... पर मँझली बहु को कोई मौका नहीं मिला की वो कुछ ऐसा करें....
आख़िरकार एक दिन घर से पी टी ऍम के लिये होने होने बच्चे के साथ गए....
रत्नेश जी भी आज घर पर ही है.... तो वो अपनी पुरानी एल्बम निकाल कर पुरानी यादो मे खोये है,,,,
घर मे कोई नहीं था.... मौका भी अच्छा हाथ लगा मँझली बहु को..
वो ये मौके हाथ से जाने नहीं देना चाह रही थी,
बड़े ही चालाकी से वो अपने ससुर के कमरे मे गई...
ये एल्बम आप देख रहे हैँ,, आप सासु माँ को बहुत मिस कर रहे है.....
हाँ बहु... बहुत.... रत्नेश जी ने उदासी भरे लहजे मे बोले....
मँझली बहु बाते करते करते रत्नेश जी से काफ़ी करीब चिपक्कर बैठी जिस से की रत्नेश जी बाहे मँझली के छाती के आस पास टकरा रही थी.. वैसे तो इस तरह से कभी तीनो बहु नहीं बैठी पर आज पहली बार ऐसा मँझली की थी..
और इस तरह से अक्सर रत्नेश जी के पोते पोतियाँ बैठ कर बाते करते थे....
रत्नेश जी कुछ पल के लिये असहज हुए पर फिर ससुर बहु और बाप बेटी का रिश्ता समझ कर इग्नोर किये...
एक बात पूछूँ आप से.... मँझली ने सवाल की
हां बहु... पूछो
आप सासु माँ को बस तस्बीरो मे देखकर मिस करते हैँ या हनेशा.... मंजगकी थोड़ी अपनी आवाज को लरजते हुए बोली....
नहीं बहु मैं अपनी पत्नी को हमेशा मिस करता हूं....
रत्नेश जी मँझली के सीने की दबाब अपनी बाहो पर धीरे धीरे बढ़ता हुआ महसूस कर रहे थे....
वो इस से बचने के लिये पानी पिने का बहाना किये...
अभी लाती हूं आप बैठिये....
ग्लास मे पानी देकर मँझली इस बार पहले से और ज्यादा करीब और चिपक कर बैठी....
रत्नेश जी जैसा समझ रहे थे... क्या कही वही बात तो मँझली की दिमाग़ मे तो नहीं चल रही है....
अच्छा बहु अब मे कुछ देर सो लेता हु ये लो एल्बम तुम इसे रख दो और जाते हुए कमरे का दरवाजा बंद करती जाना....
रत्नेश जी को नींद आ नहीं रही थी बल्कि वो बहु को अपने से दूर करने का एक बहाना मात्र था....
मँझली भी मौके का फायदा उठाने मे थी....
मे आपका पैर दवा दूं... नहींनही
सर दवा देती हूं....
अरे नहीं बहु जाओ तुम भी सो जाओ दिनभर कम मे थक जाती हो.....
ऐसा नहीं था की रत्नेश जी कुछ समझ नहीं पर रहे थे.... अगर वो होने तरफ से थोड़ी सी भी नरमी करते या इशारे देते तो आज मँझली रिश्तो की हदे पर कर जाती....
घर मे अभी तो कोई है भी नहीं इसीलिए आपसे बात करने आ गई.....
कब तक आएंगे वो लोग....
अभी तो एक दो घंटे है....
मँझली मन ही मन सोच रही थी की कैसे अपनी जाल बिछाऊ....
आख़िरकार मँझली की मन की मुराद पूरी नहीं हुई... उस दिन....
भाग 1 समाप्त
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