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ऑनलाइन प्यार भाग 1

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दो बेटे दो बहु और पति के होते हुए भी निभा अस्पताल के बेड पर पड़ी यही सोंच रही थी की जब अभी यह हाल है तो... शरीर के गिरने के बाद क्या  ?????         उमर के बढ़ने के साथ बीमारियां भी बढ़ती है और परिवार से अकेलापन भी... यूँ तो निभा जी अपने परिवार के लिये बहुत त्याग करके दो बेटे की देखभाल किये ओर जल्द ही समय से शादी कर दिए..। पर परिवार और अपनों की पहचान तो दुःख मे होती है। सुख मे तो पडोसी भी ख़ुशी मानाने आते है।        अचानक शुगर ओर ब्लड प्रेशर बढ़ जाने के कारण  निभा जी बाथरूम मे गिर पड़ी चोट भी आई... जैसे तैसे उन्हें एक निजी अस्पताल मे एडमिट करा दीया गया। अस्पताल वाले 4 दिन रहने की सलाह दे डाली.. पति और बेटे तो मानो की चाह रहे थे वो लोग जल्दी से एडमिट करा दिए। भला बहु को क्या ऐतराज की उसकी सास घर पर ना रहे और वो अपने तरीके से जिंदगी जिए। जिस बीमारी का इलाज घर पर रहकर हो सकता था उसके लिये निभा जी को एडमिट करा दीया गया। निभा जो भी इस बात को समझते देर ना की, दो दिन गुजर गए ना तो बहु ना बेटे ओर ना ही पति ने एडमिट करने के बाद अस्पताल मे मि...

साथी भाग 2

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          .          सृष्टि सीमा को पहचान चुकी थी  और आलिंगन का कसाव ही सीमा को भी अहसास करा दीया था की ये वही सृष्टि है जो कॉलेज के दिनों मे दिलो जान से चाहती थी। . दोनों सखियों का बहन मिलाप होते ही सृष्टि बोली.... सीमा आज से तुम सारा काम छोड़ दोगी सिर्फ मेरे यहाँ काम करोगी.... """" जी मैम.... लेकिन... लेकिन.... वेकीन.... कुछ नहीं... और हां मैम नहीं दीदी..., पर मे अपने कपडे सामान लाइ नहीं हूं तो... कहते हुए सीमा रुक गई.. कोई बात नहीं सब हो जायेगा.... तभी डॉ देव को कॉल करते हुए सृष्टि ने बहुत ही हंसी ख़ुशी भरे लहजे मे सीमा के बारे मे बताई.... डॉ देव भी खुश हुए की अब उसके पिता को काम से आजादी मिल जाएगी... और काम मे भी हेल्प हो जाएगी... सब कुछ अच्छे से चलने लगा सीमा घर की सारी जिम्मेदारी बहुत ही अच्छे से उठा ली जैसे उसके खुद का घर हो.... अब किसी को कोई परेशानी नहीं थी.... सबको वक़्त से चाय नाश्ता खाना सब मिलने लगा था.... """" अब होटल से पार्सल खाना भी आना बंद हो गया था... जिस वजह से डॉ देव और उनके पिता दोनों को घर का शुद्ध खाना नसीब हो र...

साथी

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डॉ देव अपनी डॉ पत्नी सृष्टि के साथ ऑफिस से घर लौट रहे थे... सृष्टि डिनर मे क्या बनाओगे... थक गई हूं यार अभी तो मार्केट मे ही है... पैक करा लो ना.. कौन अब घर जाकर किचन मे 4 घंटे टाइम देगा ??? क्या सृष्टि तुम भी ना..... दोनों पति पत्नी एक ही अस्पताल मे साथ जॉब करते थे। चिकत्सा से दोनों के जुड़े होने के कारण दिनचर्या बहुत ब्यस्त रहता था ऐसे मे अक्सर या यु कहें तो ज्यादा टाइम ऑनलाइन खाना ही होता... ओर बाकि बचे खुचे दिन अस्पताल मे या दोस्तों के तरफ से पार्टी... एक बड़े से होटल के साइड मे डॉ देव कार पार्क करके होटल मे चले गए.. इधर सृष्टि अपनी फ़्रेंड से बात करने लगी.. थोड़ी देर मे डॉ देव हाथों मे खाने का पार्सल लिये आये... सृष्टि कार का दरवाजा खोलते ही बोली कुछ दिन की और वात है डिअर फिर प्रोब्लेम सोल्व हो जाएगी...। और फिर दोनों अपने घर की तरफ निकल गए... ट्रिन ट्रिन ट्रिन.... कई बार कॉल बेल बजने के बाद डॉ देव के पिता दरवाजा खोले... अरे तुमलोग को कितना बार बोले है की घर पहुंचने से पहले कॉल कर दीया करो.... तुमलोग को इंतज़ार नहीं करना होगा... देव और सृष्टि दरवाजा देर से खुलने पर कुछ बोलते उस...

तीन बहुएँ, भाग 1

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रत्नेश जी पी डब्लू डी मे अच्छे पद पर जॉब कर रहे थे मुश्किल से अब 6 8 महीने की नौकरी बची थी...। अच्छी सैलरी के साथ पर्याप्त ऊपरी इनकम भी थी जिस से उनके 3 बेटे उनकी पत्नियां और उन सब के बच्चे सभी शहर मे रहकर अच्छी खासी खुशहाल जिंदगी जी रहे थे। रत्नेश जी की पत्नी की अचानक बिगड़ी तबियत से परेशानी सबको हुई... पर शहर मे होने के कारण अच्छे अस्पताल मे इलाज कराया गया... वक़्त की ऐसी मार थी रत्नेश जी के जीवन मे की जब घर पर रहकर पत्नी संग पोते पोतियों की खुशियां देखते तब उनकी पत्नी ब्लड कैंसर से पीड़ित हो गई... रत्नेश जी काफ़ी खर्च किये... पर डॉक्टर का जबाब महज दो महीने का वक़्त है कहकर हाथ खड़े कर लिये... अब जो भी थी सो ऊपर वाले के भरोसे  थी.... रत्नेश जी अपने कार्यकाल के बाकि बचे हुए ड्यूटी को किसी तरह पूरा कर रहे थे.... क्योंकि अब उनको ड्यूटी के साथ साथ अपनी पत्नी के साथ वक़्त भी बिताना होता था... तीन बेटे तीन बहु पोते पोतियाँ कोई भी दो पल साथ बैठकर बात ना करें..... समय गुजरता गया..... रत्नेश जी की पत्नी बिभा को अब अहसास हो चला था की उनके पास अब जीवन के कुछ दिन ही शेष है,,,. और...